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रतनगढ - कहानी दो जहां की (भाग 2)

अध्याय 2 - (परफेक्ट फैमिली)

निहारिका को कुछ पल लगे यह समझने में कि वह टेबल पर बैठे ही बैठे झपकी ले रही थी। जब वह समझी तब वह अपने उस अजीब सपने से थोड़ी परेशान हो गई। हालांकि उसे इन सपनों की कोई ठोस वजह समझ में नहीं आ रही थी और न ही उसे यह पता चल पा रहा था कि क्या ऐसे सपने सिर्फ उसे ही आते है या फिर घर के अन्य सदस्यों को भी। 

बहरहाल यह प्रश्न उसके लिए सिर्फ प्रश्न ही बनकर रह गया। क्योंकि रात काफी हो चुकि थी इसीलिये वह टेबल से उठी और अपने बेड पर जाकर फैल गई। उलझन में उलझी निहारिका को नींद भी बमुश्किल आई जिसका परिणाम यह हुआ, अगली सुबह उसकी मम्मी की चिड़चिड़ाहट भरी आवाज से हुई। वे टीका वंदन किये हुए थी और निहारिका के सिरहाने झुकी हुई उसे हिला डुला कर उठा रही थीं। 


वे तेज आवाज में लगातार उस पर बरसे जा रही थीं।
आवाज सुन कर निहारिका ने आंखे खोल अलसाई नजरों से उनकी ओर देखा, मम्मी को सर पर देख वह झट से उठ बैठी वह थोड़ा चौंक गई थी। लेकिन दो पल देखते रहने के बाद वह समझ गयी वे थोड़ी गुस्से में हैं। तब वह उठकर उनके पीछे से गले लग गयी , वह लटकते हुए बोली - मम्मी आप जब तक हो तब तक हमें क्या चिंता,  रहगंज में जब अकेले रहना होगा हमे, तब की तब देख लेंगे, अभी तो हमे अपनी छत्र छाया का आनंद लेने दीजिये। उससे तो वंचित न करें हमें।

निहारिका को सुन कर उन्होंने उसके चेहरे पर चपत लगाई,  बोलीं - अभी से आदत डाल लो,  वरना आगे बहुत परेशानी होगी। 

निहारिका अपनी मम्मी की डांट सुन कर भी मुस्कुरा रही थी। उन्होंने रुकते हुए गहरी सांस ली और फिर आगे बोली - बस बातें बहुत हो गयी अब एक काम करना हम सबकी रतनगढ की टिकट करवा लेना - उनके हाथ बिस्तर की सलवटों को ठीक कर रहे थें।

“रतनगढ़ की टिकट” यह नाम सुनते ही निहारिका के चेहरे पर फैली मुस्कुराहट भाग खड़ी हुई,  लेकिन 'जाना तो होगा ही'। यह सोचकर वह मिसेज त्रिपाठी के गले से अलग हुई और कबर्ड से एक जोड़ी कपड़े निकाल कर फटाफट से बाथरूम में घुस गई। मिसेज त्रिपाठी चादर घड़ी करने के बाद कमरे से बाहर निकल गईं। कुछ देर बाद जब निहारिका वापस निकली तब उसने सबसे पहला काम रतनगढ की टिकट बुकिंग का ही किया। मंगलम एक्सप्रेस जो अगले दिन सुबह साढ़े आठ बजे की थी,  की उसने पाच टिकट बुक कर लीं। टिकट बुक करने के बाद वह बाहर हॉल में चली आई,  छुटकी भी वहीं बैठी हुई थी।
'आज भी घर पर ही हो छुटकी' वह सोफे पर उसके पास बैठते हुए बोली। सोफे से धीमे से चिर चिर की आवाज निकली जिसे सुन छुटकी धीमे से हंसते हुए बोली, "जीजी , बहुत वजन हो रहा है! 

बिन कुछ जवाब दिये निहारिका ने अपना फोन उठाया और ऑफिस गए अपने पापा को नम्बर मिला दिया। वह सोच रही थी,  पापा को पहले से बताना तो होगा कि कल उन्हें ऑफिस से छुट्टी लेनी है। वहीं पास में बैठी छुटकी लगातार निहारिका की ओर देख रही थी। निहारिका का जवाब न देना अक्सर उसे खल जाता था। निहारिका को खुद पर छुटकी की आंखे जमी होने का एहसास होने पर उसने "अभी बताते हैं हम छुटकी पहले फोन कर लें एक" कहते हुए उसने फोन कान से सटा लिया। घण्टी जा रही थी, कि अचानक से "हेलो" की एक भरभराती आवाज उसके कानों में पड़ी।

वह बोली - पापा ! कल सुबह 08:30 बजे की ट्रेन है मंगलम एक्सप्रेस... तो हमें घर से 07 :30 बजे ही निकलना होगा। आप अपने ऑफिस में छुट्टी के लिए बोल दीजिएगा।

ओके बेटे! फोन के दूसरी तरफ से अब सौम्यता भरी आवाज आई जिसके साथ ही फोन कट चुका था। निहारिका ने छुटकी की ओर तुनकते हुए देखा। वह उससे कुछ कहने ही वाली थी कि तभी उसे सामने से उसकी मम्मी आती हुई दिखाई पड़ीं।

"निहारिका,  टिकट बुक कर ली न आपने?"  पूछते हुई वे उधर ही चली आ रहीं थीं।

हां! मम्मी...! सुबह 08 :30 बजे की ट्रेन है इसीलिए हमें घर से 7:30 बजे निकलना होगा। पापा को भी बोल दिए है हम। अभी आपकी जो भी तैयारियां करनी बाकी रह गयी हैं वह आप कर लीजियेगा ठीक है, ऐसा बोलकर निहारिका उठकर वहां से जाने लगी। मिसेज त्रिपाठी तब तक वहीं आ चुकी थीं। लेकिन निहारिका को जाता देख उन्होंने पीछे से उसे टोका ,  "कहां जा रही हो?  क्या सारी तैयारियां मैं अकेले ही करूंगी ? 

निहारिका रुक कर पीछे मुड़ चौंकते हुए बोली - ऐसी क्या विशेष तैयारी करनी है मम्मी आपको?  बस कपड़े ही तो पैक करने है थोड़े बहुत वह तो आप कर ही लेंगी।

वे बिगड़ते हुए बोलीं - केवल कपड़े ही थोड़े ले जाने है, निहारिका! और भी तैयारियां करनी पड़ेगी। लेकिन नही मुझे तो अकेले ही खपना है।

निहारिका इतने धीमे से बोली जितना कि मिसेज त्रिपाठी सुन सके - क्या मम्मी ! वही आपके पुराने डायलॉग! ठीक है,  बताओ क्या-क्या करना है?  कौन सी स्पेशल तैयारियां करनी बाकी है अभी। हम अभी फटाफट कर देते हैं... नही तो पूरे रास्ते भर आप यही कहेंगी "हे भगवान...! मेरी दो दो आलसी बेटियां हैं।" छुटकी उछलते हुए बोली (जो अभी तक दोनो की बातचीत सुन मुंह पर हाथ रख हंस रही थी) - जीजी! मम्मी तो मम्मी ही हैं।

"चुप कर छुटकी" निहारिका ने उसे डपटा तो वह अपने चमक रहे दांतो को छुपा गयी। निहारिका की मम्मी ने उसे सारा काम बताया और खुद भी तुरंत ही किचन में सूखा नाश्ता बनाने के लिए चली गई। काम खत्म होते होते शाम हो चुकी थी। मिस्टर त्रिपाठी और निहारिका का भाई दोनो ही घर के अंदर बैठे हुए कल के बारे में चर्चा कर रहे थे।

निहारिका अभी भी असमंजस में बैठी हुई थी। वह तो चाहती थी कि यह ट्रिप प्लान कैंसिल हो जाये और उसे कहीं न जाना पड़े। वह छुटकी का इरादा टालने के उद्देश्य से बोली - छुटकी देख ले 600 किलोमीटर की दूरी है अपने स्टेशन से रतनगढ की। यानी कम से कम सात घण्टे का सफर तो तू मान ही ले,  ऊपर से लेट लतीफ हुई ट्रेन वह मसला अलग। इसका मतलब यह हुआ कि कल और परसो दो दिन और तेरा कॉलेज बंक। कैसे मैनेज करेगी?

जीजी मुझे इसकी टेंशन तो बिल्कुल नही है - छुटकी गर्वीले अंदाज में बोली - क्यों होगी भला,  कॉलेज फ्रेंड कब काम मे आएंगे। सबसे बोल के रखी हूँ मैं पहले से ही जीजी।
वेरी स्मार्ट! छुटकी - निहारिका ने कहा तो छुटकी गर्व से मुस्कुराते हुए "वह तो मैं हूँ जीजी" बोल पड़ी।

वह दोनो बातें कर ही रही थी कि मिस्टर त्रिपाठी की रौबीली आवाज उनके कानों में पड़ी जो सबको जल्दी ही अपने बिस्तर पर जाने का कह रहे थे। उन्हें सुनकर वे दोनों जल्दी ही अपने कमरों की ओर भागी। चूंकि निहारिका और छुटकी के कमरे आसपास थे सो अपने कमरों की ओर जाने से पहले उन्होंने एक दूसरे को गुड नाईट कहा और अपने अपने कमरे में जाकर धमक गयी।

जब निहारिका बिस्तर पर पहुंच गयी तब वह एक बार फिर उलझनों से घिर चुकी थी। चादर फैलाते हुए वह सोच रही थी न जाने क्यों हमे रतनगढ से इतनी चिढ़ है। जबकि हम कभी पहले वहां गए तक नही है, लेकिन अब वहां जाने के नाम से ही हमारे पैर वजनीले मालूम पड़ रहे है और मन वह तो उल जलूल उलझनों में ही घिर गया है। ख्यालो में घिरी निहारिका नींद की आगोश में पहुंच गई।

छपाक!...

"निहारिका अभी तक सो रही हो उठो!" चीखने की तेज आवाज उसके कानो में पड़ीं।

मम्मी ... चिल्लाते हुए वह हड़बड़ा कर उठ बैठी। अपना चेहरा नम महसूस होने पर उसके हाथ खुद ब खुद उसके गालों तक पहुंच गए। वह पूरी तरह भीगा हुआ था। उसने गर्दन घुमा कर अपने बायें देखा,  उसकी मम्मी हाथ मे जग पकड़े हुए उसकी ओर ही थोड़े गुस्से से देख रहीं थीं। 

मम्मी आपने हमें पानी डालकर उठाया,  लेकिन क्यों?  उसने असमंजस से पूछा ! वे बरसीं -  अगर तुम्हारी वजह से ट्रेन छूट गई निहारिका तो मैं अगली ट्रेन से जाने पर पूरे रास्ते तुम्हे बैठने नहीं दूंगी और तुम्हारी सीट किसी बिना टिकट वाले को दे दूंगी। चलना फिर खड़े होकर रास्ते भर।

"ना ना! मम्मी " निहारिका बिजली की तेजी से बिस्तर से उतर कर खड़ी हो गयी। "आते हैं मम्मी,  बस कुछ मिनट दो,  हम भूल गए थे कि हमे भी जाना है" - निहारिका ने बेमन से कहा।

 मिसेज त्रिपाठी जग लेकर कमरे से बाहर निकल गईं।

 निहारिका को तैयार होने में ज्यादा समय नही लगा। जब वह तैयार होकर बाहर आई उसने देखा, उसकी बहन छुटकी और मान्या अपने सारे सामान के साथ हॉल बैठी हुई बतिया रही थी। मान्या और छुटकी दोनों ही इस ट्रिप के लिए बहुत ही ज्यादा एक्साइटेड दिख रहीं थी। 

मिसेज त्रिपाठी जो अपनी रसोई में थी, ने सभी को डायनिंग पर पहुंचने का आदेश दिया और खुद भी हाथ मे स्टील का डोंगा पकड़े डायनिंग पर चली आ रही थीं। उन्हें सुन सभी उठ कर डायनिंग पर पहुंच गए। निहारिका एक कुर्सी पकड़ कर चिपक गयी। छुटकी मान्या दोनो ही निहारिका के आजु बाजू धमक गयीं। ब्रेड बटर के साथ परांठे भी टेबल पर सज रहे थे। नाश्ता करते हुए मिसेज़ त्रिपाठी ने एक बार उनकी ओर सरसरी नजरो से देखते हुए उन्हें नाश्ते के बाद एक बार फिर सारा सामान चेक कर सारा सामान बाहर रखने का कहा। तीनो के सर एक साथ सहमति से हिल गए। नाश्ता खत्म करते करते पन्द्रह मिनट गुजर चुके थे।

जब सभी नाश्ता खत्म कर चुके तब मिस्टर त्रिपाठी कुछ ही देर में आने का कह अपने कमरे में चले गए। मिसेज त्रिपाठी खाली प्लेटो को समेटने में लग गयी तो वहीं निहारिका छुटकी और मान्या तीनो ही मिसेज त्रिपाठी के बताए काम पर लग गयी थी। हां, उनके घर का एक आलसी सदस्य निहारिका का भाई वह डायनिंग से उठ कर सोफे पर धमक चुका था और अपने थोड़े सफेद बेतरतीब दांत चमकाते हुए उन्हे ठीक से कार्य करने का आदेश दे रहा था।

निहारिका के पापा मिस्टर त्रिपाठी भी कमरे से बाहर हॉल में चले आये। वे भी दूसरे सोफे पर बैठते हुए टेबल पर रखा अखबार उठा कर उस की सुर्खियों पर नजरे दौड़ाने लगे। जब निहारिका सारा सामान दरवाजे के बाहर लगा चुकी थी तब वह भी बाकी सबके साथ सोफे पर आकर बैठ गयी। उसने सारा सामान रखने की सूचना दी सबको और सुस्ताने लगी। 'बहुत अच्छे'  उसके भाई की आवाज आई। तो छुटकी और मान्या दोनो ही उस पर बरस पड़ीं। निहारिका ने खुद को उन तीनों के मसले से दूर रखना ही बेहतर समझा। सोफे पर बैठे हुए उसे कैब बुक करने का ख्याल आया। मोबाइल के जरिये उसने कैब बुक की और कैब ड्राइवर को अपनी करेंट लोकेशन बता दी।

एक के बाद एक पन्ने पलटने के बाद मिस्टर त्रिपाठी ने हाथ मे पकड़ा अखबार नीचे सरका दिया। वे बोरियत से बड़बड़ाये - आजकल अखबार में भी वही खबरें ‘लूट - पाट, मार काट’ हर रोज दिखाई देने लगी हैं। और अगर खबरे न हो तो बस हर पन्ने पर दिखाई देते है तो सिर्फ विज्ञापन। उन्होंने हाथ मे पकड़ी घड़ी की ओर देखते हुए निहारिका से कहा, ' सात बजे चुके है,  क्या तुमने कैब बुक कर ली है बेटे?

‘जी पापा'  निहारिका ने कहा - लगभग सात मिनट में यहां पहुंच भी जाएगी।

मिसेज त्रिपाठी कमरे के दरवाजे से बोली - सात मिनट हैं न अभी,  मैं अपना बचा हुआ कार्य कर लेती हूं। ज्यादा नही है बस पूजा घर मे माथा टेकना है और दूध का पतीला उठाकर फ्रिज में रखना है।

"ओके मम्मी" , छुटकी की आवाज गूँजी। वे तुरन्त मंदिर की ओर बढ़ गयी। निहारिका,  छुटकी,  मान्या,  मिस्टर त्रिपाठी और निहारिका का भाई सभी हॉल में ही बैठे हुए थे कि तभी वे सभी एक आवाज से चौंक पड़े।

धम्म....! रसोई से किसी बर्तन के गिरने की तेज आवाज वहां गूँजी।

अगले ही पल निहारिका की मम्मी मिसेज त्रिपाठी घबराते हुए बाहर आती हुई दिखाई दीं,  वे थोड़ी परेशान सी दिख रहीं थीं। उन्होंने कहा , "पता है..., सुनिए ... उनके शब्द हड़बड़ा रहे थे जिसे देख निहारिका और बाकी सब भी थोड़े परेशान हो गए।“ 

मिसेज त्रिपाठी आगे बोलीं - अभी-अभी पता है क्या हुआ?  मैं जब पूजाघर में माथा टेकने गई थी तब रसोई में रखा दूध गिर कर बिखर गया। मेरा मन थोड़ा घबरा रहा है.. यह तो बड़ा अपशकुन हो गया। मिसेज त्रिपाठी वैसे तो बहुत समझदार महिला थीं लेकिन शगुन अपशगुन,  और ऊंच नीच को बहुत मानती थीं। वे एक सफाई पसन्द महिला थीं एवं हर कार्य उन्हें समय पर करना ही पसंद था।

सबके साथ निहारिका भी सामान्य होते हुए बोली - क्या मम्मी आप भी... आपके "गढ़ वाले महाराज" के धाम जाते समय भी शकुन - अपशकुन का विचार कर रही हो - निहारिका ने घड़ी पर नजर डाली। सात मिनट हो चुके है कैब भी बाहर आती ही होगी।

लेकिन यह... अपशगुन उन्होंने कहना जारी रखा। निहारिका को अपना फोन रिंग होता हुआ मालूम पड़ा। उसने नंबर देखते हुए कहा - मम्मी! कैब आ चुकी है बाहर। हालांकि निहारिका सपनो की वजह से परेशान रहती थी लेकिन वह डरपोक नही थी। बहरहाल मिस्टर त्रिपाठी ने सभी को बाहर आने के लिए कहा तो,  मिसेस त्रिपाठी मान्या,  छुटकी सभी घर से बाहर निकल आये। आते हुए मिसेज़ त्रिपाठी ने अपने बेटे को दरवाजा अंदर से बन्द रखने की सख्ती से हिदायत दी।

 जब वह सभी घर के बाहर निकल कर कैब के पास जा रहे थे तब उनके दाये तरफ की कंधे तक ऊंची दीवार से एक काली बिल्ली कूदते हुए उनके सामने से गुजर गई।

काली बिल्ली को देखते हुए मिसेज त्रिपाठी फिर परेशान हो गयी। वह परेशान होकर मिस्टर त्रिपाठी की तरफ देखने लगी। मिस्टर त्रिपाठी ने इशारे से उन्हें शांत रहने का इशारा करते हुए कहा, " इतना , परेशान क्यों होना ! हम लोग अपनी मन्नत पूरी करने जा रहे हैं... सो कुछ भी गलत नहीं होगा।"

वे सभी एक सफेद रंग की चारपहिया गाड़ी के सामने खड़े हो गए। निहारिका और छुटकी गाड़ी में सामान एडजस्ट करने लगी। सबसे पहले उन्होंने अपना बैग से भरा सामान रखा। मान्या ने अपना जादू का चमकीला पिटारा निकाल लिया और वह सबके फ़ोटो क्लिक करने लगी।

 सभी सामान गाड़ी में एडजस्ट करने के बाद जैसे ही सभी कार में बैठने वाले थे,  मिस्टर त्रिपाठी का फोन रिंग हुआ। उन्होंने मोबाइल की स्क्रीन पर नंबर देखते हुए सभी से गाड़ी में बैठने को कहा एवं वह ऑफिस से फोन है कहते हुए एक तरफ चले गए। छुटकी और मान्या दोनो तुरन्त ही गाड़ी में बैठ गयी।

 निहारिका और मिसेज त्रिपाठी दोनो गाड़ी के बाहर ही खड़े होकर मोबाइल पर बात कर रहे मिस्टर त्रिपाठी को देखने लगे।
बात करते समय मिस्टर चेहरे के भाव बनते बिगड़ते दिख रहे थे। निहारिका और मिसेज़ त्रिपाठी दोनो ही उन्हें देख कर हैरान हो रहीं थी। जब मिस्टर त्रिपाठी फोन रख कर वह वापस आये तब वह बहुत परेशान दिख रहे थे। उनके चेहरे पर बल पड़ गये थे जिसे मिसेज त्रिपाठी ने भांप लिया। वह और निहारिका घबराते हुए एक दूसरे को देखने लगी। निहारिका सोच रही थी पापा के चेहरे पर अचानक से इतनी टेंशन क्यूं दिखने लगी, ऐसा अचानक से क्या हुआ...? सब ठीक तो है न...? 
  
क्रमशः.... 

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54 Comments

shweta soni

30-Jul-2022 08:06 PM

Bahut achhi rachana

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Shnaya

03-Apr-2022 02:16 PM

Nice part 👌

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Shruti Jhaa

09-Mar-2022 12:44 PM

Bht khoob💐🙏

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